(एक शिक्षक की आवाज़, जो वर्षों से पढ़ा रहा है और अब सवालों के घेरे में है)
🔰 प्रस्तावना – क्या हम इतने वर्षों में अयोग्य रह गए?
हम नियोजित शिक्षक हैं — वो लोग जो पिछले 10 से 20 वर्षों से बिहार के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को संभाल रहे हैं।
हमने बच्चों को A, B, C से लेकर विज्ञान, गणित और नैतिक मूल्यों तक सिखाया।
हमने स्कूलों को चालू रखा जब वहाँ स्थायी शिक्षक नहीं थे, हमने बिना संसाधनों के काम किया, और बिना नाम के बच्चों को परीक्षा में पास कराया।
लेकिन आज, सरकार हमसे कहती है — “पहले बताओ, तुम सक्षम हो या नहीं?”
क्या ये सवाल सही है?
📌 कौन हैं Niyojit Shikshak?
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ये शिक्षक बिहार में पंचायत, नगर निकाय, या जिला परिषद स्तर पर नियुक्त किए जाते हैं।
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वे पूरी तरह से कार्यरत शिक्षक होते हैं, लेकिन उन्हें “स्थायी” का दर्जा नहीं दिया गया।
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उन्हें कम वेतन, सीमित सुविधाएँ और बिना प्रमोशन के वर्षों तक पढ़ाना पड़ता है।
अब, इन शिक्षकों के लिए “Sakshamta Pariksha” (सक्षमता परीक्षा) को अनिवार्य बनाया जा रहा है ताकि उनकी योग्यता को परखा जा सके।
📣 Sakshamta Pariksha kya hai?
सक्षमता परीक्षा बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित एक परीक्षा है, जिसे पास करने के बाद ही नियोजित शिक्षकों को स्थायीत्व या बेहतर वेतनमान मिलने की संभावना होगी।
सरकार का कहना है कि ये परीक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए है, लेकिन शिक्षक इसे अपमान और असुरक्षा का माध्यम मानते हैं।
🙋♂️ हम शिक्षक इस परीक्षा के खिलाफ क्यों हैं?
नीचे वीडियो में आप देखेंगे कि नियोजित शिक्षक संघ कैसे प्रदर्शन कर रहा है और सरकार की Sakshamta Pariksha नीति के खिलाफ आवाज उठा रहा है। वीडियो में दृश्य रूप से दिख रहा है कि कितनी बड़ी संख्या में शिक्षक अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं, और Sangh की चेतावनी के बाद भविष्य का ढांचा क्या हो सकता है।
❌ 1. हमने पहले ही पात्रता परीक्षाएँ पास की हैं
हममें से अधिकांश ने पहले ही CTET, STET, D.El.Ed जैसी परीक्षाएं पास की हैं।
हमारा चयन सरकारी प्रक्रिया से हुआ है — इंटरव्यू, प्रमाण पत्र सत्यापन और मेरिट के आधार पर।
अब एक और परीक्षा लेना योग्यता पर अविश्वास जैसा लगता है।
“जब हमसे पहले ही सभी योग्यताएँ ली गई थीं, तो अब दोबारा परीक्षा क्यों?”
❌ 2. अनुभव का कोई मोल नहीं?
हमने 10-15 वर्षों तक हज़ारों बच्चों को पढ़ाया है।
हमने सरकारी स्कूलों में तब पढ़ाया जब कोई पढ़ाने वाला नहीं था।
क्या ये सब अनुभव एक पेपर की परीक्षा से कम है?
“शिक्षा एक कला है — इसे नंबरों में नहीं तोला जा सकता।”
❌ 3. नौकरी जाने का डर
Sakshamta Pariksha पास न कर पाने पर हमारी नौकरी खतरे में पड़ सकती है।
कई शिक्षक उम्रदराज हैं, कई घरेलू जिम्मेदारियों से जूझ रहे हैं — अब एक नई परीक्षा उनके लिए तनाव का कारण बनती है।
“पढ़ाने में हम पर भरोसा था, अब परीक्षा में विश्वास नहीं?”
❌ 4. मानसिक दबाव और पारिवारिक स्थिति
हर शिक्षक के पीछे एक परिवार है।
पुनः परीक्षा देना, किताबों में डूबना, वह भी तब जब हम अपने बच्चों को पालने की उम्र में हैं — एक मानसिक और भावनात्मक बोझ है।
“हम शिक्षक हैं, विद्यार्थी नहीं – हमें पढ़ाने दो, परखो मत।”
🧾 क्या कहती हैं शिक्षक संघ की रिपोर्टें?
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बिहार राज्य नियोजित शिक्षक संघ ने सरकार से मांग की है कि Sakshamta Pariksha वैकल्पिक हो।
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शिक्षक संघर्ष मोर्चा का कहना है कि:
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जो शिक्षक कई वर्षों से पढ़ा रहे हैं, उन्हें अनुभव आधारित स्थायीत्व दिया जाए।
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अगर परीक्षा जरूरी हो भी, तो:
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यह Promotion के लिए हो, न कि नौकरी छीनने के लिए।
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⚖️ अदालतों और कानून का पक्ष
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सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने समय-समय पर “समान कार्य समान वेतन” की बात को सही ठहराया है।
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लेकिन अभी तक न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने शिक्षकों की समस्याओं को पूरी तरह स्वीकारा है।
🏫 सरकार क्या कह रही है?
शिक्षा विभाग का कहना है कि:
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Sakshamta Pariksha का उद्देश्य शिक्षा गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।
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यह किसी को नौकरी से निकालने के लिए नहीं है, बल्कि जांच प्रक्रिया का हिस्सा है।
लेकिन जब परीक्षा का डर शिक्षक के जीवन और जीविका से जुड़ जाए, तो यह केवल जांच नहीं, एक सज़ा बन जाती है।
🗣️ शिक्षकों की असली सक्षमता क्या है?
सक्षम वो नहीं जो पेपर में टॉप करे, सक्षम वो है:
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जो बिना संसाधन के भी बच्चों को सिखा दे।
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जो एक गाँव में शिक्षा की रौशनी जलाए।
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जो सुबह की प्रार्थना से लेकर दोपहर की मिड डे मील तक जिम्मेदार हो।
हमने बच्चों के भविष्य को संवारा — क्या इससे बड़ी कोई परीक्षा हो सकती है?
🔊 हम क्या चाहते हैं?
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Sakshamta Pariksha अनिवार्य न हो — या इसे वैकल्पिक बनाया जाए।
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जिन शिक्षकों के पास 5+ वर्षों का अनुभव है, उन्हें प्रत्यक्ष रूप से स्थायीत्व दिया जाए।
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अगर परीक्षा ली भी जाए, तो:
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अनुभव को अंक दिए जाएँ।
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साक्षात्कार और डेमो क्लास को भी शामिल किया जाए।
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🙏 सरकार से हमारी अपील
“माननीय मुख्यमंत्री जी और शिक्षा मंत्री जी,
हमें परीक्षा से डर नहीं, पर अपमान से डर है।
हमने शिक्षा को सेवा माना है, व्यवसाय नहीं।
हमें और हमारे अनुभव को सम्मान दीजिए।”🔚 निष्कर्ष – हम सक्षम हैं, हमें और प्रमाण की जरूरत नहीं
Niyojit Shikshak सिर्फ शिक्षक नहीं, वो हर गरीब, ग्रामीण और पिछड़े समाज की शिक्षा क्रांति के सिपाही हैं।
अगर उनका अनुभव, उनकी सेवा और उनका त्याग किसी परीक्षा से कम आंका जाएगा, तो यह केवल उनका नहीं — पूरे राज्य का अपमान होगा।“हम सक्षम थे, हैं और रहेंगे — कागज़ नहीं, हमारी मेहनत गवाह है।”